Monday 24 June 2013

गायत्री मंत्र : - उत्पत्ति

गायत्री मंत्र : - उत्पत्ति 

प्रिये साधको,
न जाने क्यों मेरी अंतरआत्मा से कई महीने से ध्वनि तरंग मेरे मनो मस्तिष्क में पहुँच कर वेदमाता गायत्री के मंत्र का बार-बार उच्चारण करने के लिए प्रेरित कर रही थी! मानव मन बड़ा चंचल होता है; ऐसा सोंचकर में बार-बार उस आवाज का दमन कर रहा था ; एक दिन मैंने गायत्री मंत्र को अपने ही छोटे पुत्र के द्वारा गाते हुए सुना......

उसकी मधुर आवाज में यह मंत्र मुझे उच्चारण करने और गाने के लिए प्रेरित करने लगा! मैं अपने आप को रोंक नहीं पाया; और गायत्री मंत्र का उच्चारण किया या ऐसा कहूँ की मैं भी गाने लगा; एक आत्मिक शांति और नई ऊर्जा का एहसास हुआ! उस दिन ही मैंने फैसला कर लिया की सबसे पहले तो मुझे गायत्री मंत्र की इस उर्जावान शक्ति के तह तक जाना है; मैं कोई साधक या सिद्धि का खोज करने वाला देव उपासक नहीं हूँ! मैं तो बस अपने लिए शांति, खुशी और मानव सेवा के नये रास्तों की तलाश में हूँ........
परन्तु मेरा अध्ययन अगर अन्य लोगो को भी लाभान्वित करें तो मैं अपने-आप को धन्ये समझूंगा तथा उस सर्वशक्तिमान भगवन के प्रति आभार व्यक्त करता रहूँगा! सधको आज मैं आपको गायत्री मंत्र की उत्पत्ति और इतिहास के विषय मैं अपने अध्ययन से प्राप्त जानकारी को बाटता हूँ: -
गायत्री शब्द की उत्पत्ति
# गायत्री शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों  के मेल से हुई हैं: -
गाया- जिसका अर्थ है विशेष उर्जा”
तथा ‘त्रयते’ जिसका अभिप्राय है- “ रक्षा करना”, बराबर रखना, उद्दार या मुक्ति प्रदान करना!

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GAYATRI-GAYA
ë TRAYATE
GAYA- IT MEANS VITAL ENERGIES
TRAYATE-IT MEANS PRESERVES, PROTECTS, GIVES DELIVERANCE, GRANTS LIBERATION.
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àA prayer of praise that awakens the vital energies and gives liberation and deliverance from ignorance.
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*      ऐसा कहा जाता है की महान ऋषि विश्वामित्र ने अपने वर्षो की कड़ी तपस्या और चिन्तन के पश्चात मानव जाती के कल्याण के लिए गायत्री मान्यता की रचना की!
*   ऋग्वेद जो संस्कृत भाषा में 2500 से 3000 वर्ष पहले लिखी हाई थी, में गायत्री मंत्र को लिखा गया है! जबकी यह मान्यता है, की शताब्दियों पहले से गायत्री मंत्र का जप किया जाता रहा है! 
*      कई विद्वानों का ये भी मानना है कि शताब्दियों पहले से अस्तित्व में आया तब इसका जप सिर्फ ब्राह्मण परिवार के लोग ही कर सकते थे तथा स्त्रियों के लिए इसका जप या उच्चारण वर्जित था.!
*      कई तथ्य आज भी अछूते है ......... समयाभाव के कारन यह पोस्ट यही खत्म कर रहा हूँ .... पर मेरी अध्ययन जारी है..... जल्द ही कुच्छ नई जानकारियों के साथ उपस्थित हो जाऊंगा..
आपका मित्र
राजेश कुमार गिरि
     हो सकता आप सभी पाठको में कुच्छ अति विद्वान लोग भी शामिल हो जो मुझे सलाह देना चाहते हो ..
    आपकी टिप्पणियाँ मैं तहे दिल से स्वीकार करूँगा ...

इ-मेल- rajesh3raj@yahoo.com

Sunday 23 June 2013

गायत्री मंत्र तथा अर्थ

प्रिये मित्रो,
आपका मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग साधना-अराधना  पर स्वागत है! में कोई विद्रान या सिद्ध पुरुष नहीं हूँ, परन्तु अपने जानकारी तथा अनुभवों को आपसे बाटना चाहता हूँ! आज का विषय है: -
गायत्री मंत्र तथा अर्थ
सर्व प्रथम मैं गायत्री मंत्र का स्वंय उच्चारण कर अपने विचारों की शुद्धिकरण के लिए वेदमाता गायत्री से आह्वाहन करता हूँ!
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
इस गायत्री मंत्र को हिन्दू धरम में सबसे उत्तम मंत्र मन जाता हैं! कहा जाता है की यह मंत्र हमे ज्ञान देता है!
   आइये इस मंत्र के एक-एक  शब्द का अर्थ जानकर इसे असानी से समझने का प्रयास करते है!
गायत्री मंत्र के पहेले नौ शब्द सर्वशक्तिमान भगवान के गुणों की व्याख्या करते है: -

-प्रणव

भूर-मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाला

भुवः-दुख़ों का नाश करने वाला

स्वः-सुख़ प्रदान करने वाला

तत-वह,

सवितुर-सूर्य की भांति उज्जवल

वरेण्यं-सबसे उत्तम

भर्गो-कर्मों का उद्धार करने वाला

देवस्य-प्रभु का 

धीमहि-ध्यान या आत्म चिंतन के योग्य 

धियो-बुद्धि,
 
यो-जो,
 
नः-हमारी,
 
प्रचोदयात्-हमें शक्ति दें!

गायत्री मंत्र का अर्थ : - हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हे; आप हमारे दुःख और दर्द का निवारण करने वाला हे; आप हमे सुख और शांति प्रदान करने वाला है!
     हे संसार के विधाता! हमे शक्ति प्रदान करो की हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर संके! कृपा करके हमारी वृद्धि को सही रास्ता दिखाये!
गायत्री मंत्र à सूर्ये देवता के लिए प्रार्थना è हमने मंत्र के उच्चारण में एक शब्द “सवितुर” का उच्चारण किया; जिसका अर्थ है- सूर्ये के भांति उज्जवल! यह मंत्र सूर्ये देव के लिए प्रार्थना के रूप में भी माना जाता है!
पढना न भूले ......

गायत्री मंत्र की उपत्ति का इतिहास è अगले ब्लॉग पोस्ट में 

Written By- Rajesh Kumar Giri
Rishabh Raj Giri

Typed By- Rishabh Raj Giri