RAJESH KUMAR GIRI- AN INTRODUCTION

प्रिये मित्र,
  मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग में आपका स्वागत है! इस ब्लॉग को बेहतर से बेहतर बनाने का मेरा प्रयास प्रति दिन जारी रहेगा! मै सदैव यह प्रयास करूँगा कि आपको अपने अनुभव तथा अध्ययन से निखार संकू! यह ब्लॉग सबसे पहले मैने अपने जीवन परिवर्तन की आकांक्षा से विकसित करना शुरू किया है!
Rajesh Kumar Giri

“चाहे संकीर्ण कहो, या पूर्वाग्रही
जिस टिस को सहते रहे......
काँटों की चुभन की तरह....
उसका स्वाद चख कर तो देखो
हिल जायेगा पाँव तले जमिन का टुकड़ा!”
मै; राजेश कुमार गिरी पेसे सी गणित का शिक्षक लगभग 16 वर्षो का अनवरत अनुभव परन्तु सदैव आर्थिक आजादी से मिलो दूर.... आखिर क्यों?
  हमारी जिंदगी के कुछ निर्णय ऐसे होते है, जो जीवन की दिशा और दशा को प्रभावित करते है! परन्तु मेरा अनभव है; की सामाजिक, पारिवारिक आर्थिक तथा मानसिक अधार ही निर्णय को प्रभावित करने वाले प्राथमिक कारक है! मैने अपने सभी कारको को टटोलने लगा, क्योकि मै खोजना चाहता था; मैं जानना चाहता था; मै अपनी गलतियो को खोजकर सुधारता चाहता था; मै अपनी गलतियों की खोजकर सुधारना चाहता था; मै सभी लोगो तक अपनी अनुभव पँहुचाना चाहता था की आखिर मै गरीब क्यों था?
   यही से शुरू होता है मेरे जीवन परिवर्तन का सफ़र! तो आइये यहाँ से शुरू करते है!
Rajesh Kumar Giri

“ तारीखे तितली थी, उड़ गई,
      महीने केचुले थे सरक गए!
साल कैलेण्डर थे उतर गए,
  नोकरी की चिठ्ठियां, विरहणी की पांति थी....
भेजी गई कभी न लौटने के लिए!!”
मेरे पिता स्वर्गीय श्री कान्ति गिरी, जो एक गरीब दूकानदार थे! पान-बीडी तथा छोटे-छोटे बच्चो की खुशियाँ यानी टोफियाँ बेचते थे! उनका मानना था की इन्सान यदि कढिन परिश्रम करत है तो है तो वह सफल जरुर होता है! इसमें कोई दो राय नहीं है क्योकि मैंने कढिन परिश्रम करके शिक्षा को दुनिया में सफलता.. सिर्फ सफलता प्राप्त की परन्तु आर्थिक अजादी, बेहतर स्वास्थय तथा बेहेत्रिन पहचान नहीं! मनो- मस्तिष्क में हमेशा एक हलचल-सी बनी रहे की मै कुछ ऐसा करूँ जो मुझको ही नहीं बल्कि औरो को भी कामयाब बना दे! कई बार मैंने अपने मित्रो संजीव कुमार मिश्रा(रुप्वालिया-बिहार) और रंजन कुमार शर्मा(राम नगर-बिहार) के साथ प्रयास कियें! सफलता तो मिलो दूर रही परन्तु सामाजिक व्यंग्य के पात्र हमलोग बनते रहे!
  आखिर सफलता क्यों नहीं मिल रही थी? इस छोटे से वाक्ये ने मुझे बेचैन कर दिया! मैंने बड़े बड़े सफल फिर भी निकल नहीं रहा था! एक दिन एक जाने-माने नेटवर्किंग कम्पनी में काम करने वाले एक मित्र सुनील बंसल जी ने मुझे संतोष नायर की भाषण आग ही आग सुनाई; और जीवन के प्रति मेरा नजरिया ही बदल गया!
     पहेली बार मुझे एक ऐसा उदाहर्ण मिला, जिसने मेरे क्यों? को स्पस्ट कर दिया!
“अगर सिर्फ मेंहनत से सफलता मिलती; तो एक रिक्शेवाला जो दिन-रत कढिन परिश्रम करत है; दुनिया का सबसे सकल तथा अमिर व्यक्ति होता!”
   हाँ! यह स्पष्ट है की मेंहनत सफलता का एक कारक हो सकता है! मैंने अपने कार्यशैली को जांचना प्रारंभ किया! मैंने यह किया की मै अपने पिताजी की तरह मेहनती था; परन्तु मेने जो भी काम किये थे; उनकी शुरुआत मैंने कभी भी स्वयं से नहीं किया! यही कारण था की दिन-महीने-साल अर्थात, 16 वर्ष कढिन परिश्रम में गुजर गए परनतु मेरे अपने सपने अधूरे रह गए थे! मैंने सफल होने के मंत्रो की खोज में जुट गया! सफल व्यक्तित्वों से मिलने लगा! उनकी बातों को सुनने लगा! उनके कथनों को डायरी में लिकने लगा!
बूंदे चुरा-चुरा कर...बन गया मै सागर!"
WRITTEN BY- RAJESH KUMAR GIRI
TYPED BY- RISHABH RAJ GIRI

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1 comment:

  1. Rajesh Kumar Giri - The Practical Success Coach

    https://madamrekha.blogspot.com/p/rajesh-kumar-giri-introduction.html

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