Sunday 23 June 2013

गायत्री मंत्र तथा अर्थ

प्रिये मित्रो,
आपका मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग साधना-अराधना  पर स्वागत है! में कोई विद्रान या सिद्ध पुरुष नहीं हूँ, परन्तु अपने जानकारी तथा अनुभवों को आपसे बाटना चाहता हूँ! आज का विषय है: -
गायत्री मंत्र तथा अर्थ
सर्व प्रथम मैं गायत्री मंत्र का स्वंय उच्चारण कर अपने विचारों की शुद्धिकरण के लिए वेदमाता गायत्री से आह्वाहन करता हूँ!
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
इस गायत्री मंत्र को हिन्दू धरम में सबसे उत्तम मंत्र मन जाता हैं! कहा जाता है की यह मंत्र हमे ज्ञान देता है!
   आइये इस मंत्र के एक-एक  शब्द का अर्थ जानकर इसे असानी से समझने का प्रयास करते है!
गायत्री मंत्र के पहेले नौ शब्द सर्वशक्तिमान भगवान के गुणों की व्याख्या करते है: -

-प्रणव

भूर-मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाला

भुवः-दुख़ों का नाश करने वाला

स्वः-सुख़ प्रदान करने वाला

तत-वह,

सवितुर-सूर्य की भांति उज्जवल

वरेण्यं-सबसे उत्तम

भर्गो-कर्मों का उद्धार करने वाला

देवस्य-प्रभु का 

धीमहि-ध्यान या आत्म चिंतन के योग्य 

धियो-बुद्धि,
 
यो-जो,
 
नः-हमारी,
 
प्रचोदयात्-हमें शक्ति दें!

गायत्री मंत्र का अर्थ : - हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हे; आप हमारे दुःख और दर्द का निवारण करने वाला हे; आप हमे सुख और शांति प्रदान करने वाला है!
     हे संसार के विधाता! हमे शक्ति प्रदान करो की हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर संके! कृपा करके हमारी वृद्धि को सही रास्ता दिखाये!
गायत्री मंत्र à सूर्ये देवता के लिए प्रार्थना è हमने मंत्र के उच्चारण में एक शब्द “सवितुर” का उच्चारण किया; जिसका अर्थ है- सूर्ये के भांति उज्जवल! यह मंत्र सूर्ये देव के लिए प्रार्थना के रूप में भी माना जाता है!
पढना न भूले ......

गायत्री मंत्र की उपत्ति का इतिहास è अगले ब्लॉग पोस्ट में 

Written By- Rajesh Kumar Giri
Rishabh Raj Giri

Typed By- Rishabh Raj Giri

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